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आक्रोश का सैलाब: धमतरी शिक्षा विभाग ने किया 'आधा न्याय' ​शिक्षक ढालूराम साहू बहाल, पर डीईओ का वादा अधूरा! व्हाट्सएप पर शिकायत का मूल कारण बना 'शिकायत शाखा प्रभारी' अब भी कुर्सी पर...

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धमतरी (छत्तीसगढ़)। 

प्रदेश भर के शिक्षक समुदाय के तीव्र आक्रोश के सामने झुकते हुए, शिक्षा विभाग ने आखिरकार सहायक शिक्षक ढालूराम साहू का निलंबन समाप्त कर दिया है। साहू को कुरूद विकासखंड के नवीन प्राथमिक शाला नारी में 13 नवंबर 2025 को पुनः पदस्थ कर दिया गया है। "व्हाट्सएप पर शिक्षा व्यवस्था की कमियों को उजागर करना पड़ा था भारी," इस पूरे विवाद में सत्य और शिक्षक एकजुटता की जीत तो हुई, लेकिन न्याय की यह कहानी यहीं आकर थम गई है।

​शिक्षक ढालूराम साहू ने अपनी बहाली को “न्याय, एकजुटता और सत्य की विजय” बताते हुए संयुक्त शिक्षक संघ का आभार व्यक्त किया है, पर सवाल यह है कि क्या विभाग केवल दबाव कम करने की कोशिश कर रहा है?

​वादा टूटा: क्यों 'बाबू' पर नहीं हुई कार्रवाई?

​विवाद का मूल कारण बनी शिकायत शाखा प्रभारी पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने से शिक्षा विभाग की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। निलंबन समाप्ति भले ही राहत दे, लेकिन शिक्षक समुदाय का असली आक्रोश 'शिकायत शाखा प्रभारी' के बरकरार रहने पर है— वह अधिकारी, जिसकी एकतरफा कार्रवाई के आधार पर शिक्षक को निलंबित किया गया था।

​संयुक्त शिक्षक संघ, जिला धमतरी, के जिला अध्यक्ष अमित महोबे ने इस मामले पर जोरदार पहल की थी। डीईओ से सीधी चर्चा के दौरान, अधिकारी ने संघ और मीडिया के सामने दो स्पष्ट घोषणाएं की थीं:

  1. ​निलंबन समाप्त किया जाएगा।

  2. ​शिकायत शाखा के बाबू को हटाया जाएगा।

​निलंबन समाप्ति के साथ पहला वादा पूरा हो गया, लेकिन दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण वादा अधूरा रह गया है।

​संघ की चेतावनी: 'यह न्याय आधा है'

​संयुक्त शिक्षक संघ एवं तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ कड़े शब्दों में मांग कर रहा है कि विभाग तुरंत अपना वादा पूरा करे और विवाद की जड़ बने शिकायत शाखा के प्रभारी को तत्काल प्रभाव से हटाए। संघ के अनुसार, जब तक गलत कार्रवाई करने वाले अधिकारी पर एक्शन नहीं होता, तब तक यह बहाली केवल कागजी खानापूर्ति है, व्यवस्थागत गलती का सुधार नहीं।

​शिक्षक समुदाय एक स्वर में पूछ रहा है— "आखिर अधूरी कार्रवाई क्यों?" जब तक इस अधिकारी पर कार्रवाई नहीं होती, शिक्षकों की नाराज़गी कम होने वाली नहीं है।

​अब सबकी नजरें शिक्षा विभाग पर टिकी हैं कि क्या वह अपने ही वादे को पूरा करते हुए विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है, या फिर शिक्षक समुदाय के निरंतर आक्रोश का सामना करने को तैयार है।

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