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“डांस नहीं, दिमाग पर कब्ज़ा: सुकमा में ब्रेनवॉश के जाल ने 17 साल की जिंदगी निगल ली”

सुकमा | Breaking Now Desk


एक 17 वर्षीय नाबालिग की मौत ने सुकमा को नहीं—पूरे समाज को झकझोर दिया है। यह सिर्फ फांसी पर झूलता एक मासूम नहीं, बल्कि हमारी संवेदनाओं, सिस्टम की तैयारी और डिजिटल युग में बच्चों की मानसिक सुरक्षा पर लग रहा एक बड़ा प्रश्न है।

जिस बच्चे की गुमशुदगी ने कुछ दिन पहले महिला आयोग का ध्यान खींचा था… आज वही बच्चा शांत है—हमेशा के लिए।


पर सवाल ज़िंदा हैं।


क्या यह सिर्फ आत्महत्या थी?

या किसी मानसिक दबाव, भावनात्मक हेरफेर और सामाजिक चुप्पी का परिणाम?

कौन-सी अदृश्य शक्तियाँ उसे इस कगार तक ले गईं?


डांस के नाम पर ब्रेनवॉश? संदिग्ध नेटवर्क पर उंगली


सूत्रों के अनुसार नाबालिग बेहद योजनाबद्ध तरीके से प्रभावित किया गया।

डांस सिखाने का लालच देकर उसे नए मित्र, नई पहचान और नए व्यवहार की ओर धकेला गया।


परिवार का आरोप है—

उसके पहनावे-बोलचाल तक बदल गए थे, मानसिक भ्रम पैदा हुआ था।


यही नहीं, मामले में संदिग्ध समूह और नेटवर्क की सक्रियता की भी चर्चा है, जिसकी जांच मांग उठ रही है। डिजिटल-लिंक्स, सोशल इन्फ्लुएंस व भावनात्मक कंडीशनिंग की भी बात सामने आ रही है।


मुद्दा किसी समुदाय का नहीं—किसी बच्चे की सुरक्षा का है।

हर पहलू की निष्पक्ष जांच ज़रूरी है ताकि सच सामने आए व निर्दोषों पर उंगली न उठे और दोषी बच न पाएँ।


पुलिस ने किया था रेस्क्यू, लौटने के बाद बदले संकेत


25 अक्टूबर: पिता ने गुमशुदगी दर्ज कराई

26 अक्टूबर: नाबालिग धमतरी से बरामद

काउंसलिंग–बयान के बाद

28 अक्टूबर की रात: परिवार को सुपुर्द


पर लौटने के बाद उसका व्यवहार और सोच में असामान्य बदलाव दिखे।

परिवार संभाल नहीं पाया। सिस्टम शायद पूरी गहराई तक समझ न सका।


और 4 दिन बाद—एक जीवन थम गया।

नयापारा में संदिग्ध गतिविधियों की चर्चा, 40 लोगों ने थाने का घेराव किया था


सूत्र बताते हैं कि जिस युवक के संपर्क में नाबालिग आया था, वह लंबे समय से कुछ लोगों के साथ किराए से रह रहा था।

28 अक्टूबर को करीब 40 लोग सुकमा थाने पहुंचे—जोरदार बहस-विवाद हुआ।


तब भी, और आज भी—ईमानदार जांच की मांग उठ रही है।

बड़ा सवाल – कौन जिम्मेदार?

डिजिटल व भावनात्मक ब्रेनवॉश?

संदिग्ध नेटवर्क?

अभिभावक-समाज की अनदेखी?

या सिस्टम की सीमाएँ?

उत्तर जरूरी हैं।

क्योंकि बात सिर्फ एक बच्चे की नहीं—हमारी आने वाली पीढ़ी की है।


महिला आयोग सदस्य दीपिका सोरी का हस्तक्षेप

मामला पहले ही राज्य महिला आयोग तक पहुंच चुका था।

अब आयोग फिर सक्रिय—सत्य और न्याय की दिशा में कार्रवाई की मांग तेज।

समाज के लिए चेतावनी की घंटी

यह घटना सिखाती है—

सिर्फ सुरक्षा नहीं, मानसिक सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है।

बच्चों के मन, मोबाइल और मित्र-परिचय को समझना आज परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

यह आरोपों की लड़ाई नहीं, भविष्य की रक्षा का समय है।

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