“गरीब बच्चों को पढ़ाओ—तभी भगवान खुश होंगे”: पं. घनश्याम द्विवेदी जी के विद्या दान संदेश ने कुरूद में जगाई नई चेतना!
- moolchand sinha
- 4 days ago
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कुरूद (धमतरी):
कुरूद में सात दिनों से बह रही भक्ति और ज्ञान की अमृतधारा सोमवार को अपने चरम पर पहुँची, जब नंदनवार परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान सप्ताह का भव्य समापन हुआ। जैसे ही कथा स्थल पर हजारों श्रद्धालुओं की आवाज में “हरे कृष्ण… हरे राम” का जयघोष गूंजा, पूरा नगर आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्य भावनाओं से सरोबार हो उठा।
भगवताचार्य पं. घनश्याम द्विवेदी जी महाराज के ओजस्वी वचनों ने जनमानस को न केवल भावविभोर किया, बल्कि जीवन की गहराई में उतरकर धर्म, सेवा और संवेदना का सजीव संदेश भी दिया।
ज्ञान गंगा का अवतरण
समापन दिवस पर महाराज श्री ने धर्म के गूढ़ रहस्यों को सरल शब्दों में उजागर करते हुए कहा — “भागवत कथा का श्रवण तभी संभव होता है, जब स्वयं भगवान हमें याद करते हैं। यह कथा केवल जीवन नहीं बदलती, बल्कि उसे दिव्यता से भर देती है।”
उन्होंने भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से लेकर भस्मासुर वध, तथा 16100 कन्याओं के उद्धार जैसे प्रसंगों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा —
“भगवान अपने भक्त की लाज रखने के लिए स्वयं सारे नियम तोड़ देते हैं — यही सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा है।”
दो प्रेरक जीवन संदेश: दान और सम्मान
कथा के दौरान पं. द्विवेदी जी ने समाज में चेतना जगाने वाले दो अनमोल संदेश दिए —
विद्या दान महादान:
उन्होंने कहा, “विद्या दान ही सच्चा महादान है।” हर समर्थ व्यक्ति को एक जरूरतमंद बच्चे की शिक्षा का जिम्मा उठाने का आह्वान करते हुए कहा —“जिस समाज में हर घर में ज्ञान का दीप जले, वहाँ अंधकार टिक नहीं सकता।”
नारी शक्ति का वंदन:
उन्होंने कहा, “नारी को कभी साधारण मत समझो — वही आदि शक्ति है। शांत होती है तो माँ दुर्गा है, और धर्म संकट में आती है तो झाँसी की रानी बन जाती है।”
भाव का महत्व: मंदिर और परिवार दोनों में
महाराज श्री ने कहा — “भगवान को भोग नहीं, भाव चाहिए। मंदिर जाओ तो खाली हाथ मत जाओ — कम से कम एक पुष्प, एक भावना लेकर जाओ।”
उन्होंने परिवार के प्रति भी यही भाव जोड़ा —
“बेटी या अपनों के घर जाओ तो कुछ लेकर जाओ, क्योंकि भगवान और अपने — दोनों भाव के भूखे होते हैं।”
भव्य विदाई और भक्ति का उल्लास
समापन अवसर पर भक्ति का सागर उमड़ पड़ा। “तेरे बिना श्याम हमारा नहीं कोई” और “कन्हैया वो कन्हैया” जैसे भजनों पर भक्तजन झूम उठे। पुष्प वर्षा और दीप प्रज्वलन के बीच जब हरि नाम संकीर्तन गूंजा, तो वातावरण में अलौकिक ऊर्जा फैल गई।
नंदनवार परिवार का यह अनुकरणीय आयोजन न केवल धार्मिक चेतना का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक संस्कार, नारी सम्मान और सेवा भाव का आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत किया।
कुरूद की धरती सचमुच इस दिन भक्ति, ज्ञान और सेवा के संगम में स्नान करती नजर आई।








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